सर्वपितृ या आश्विन अमावस्या कल, नोट कर लें पूजा- विधि और शुभ मुहूर्त

नागपुर (हमारा वतन) हिंदू धर्म में अमावस्या का बहुत अधिक महत्व होता है। अमावस्या तिथि भगवान विष्णु को समर्पित होती है। इस दिन भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा की जाती है। आश्विन मास में पड़ने वाली अमावस्या का महत्व कई गुना अधिक माना जाता है। हर माह में एक बार अमावस्या तिथि पड़ती है। इस साल 25 सितंबर, रविवार को सर्वपितृ अमावस्या पड़ रही है। पितृपक्ष में 15 दिनों तक पितरों को जल, श्राद्ध और तर्पण देकर संतुष्ट किया जाता है। जिस पितर के मृत्यु की तिथि ज्ञात नहीं होती उन पितरों को अश्वनी मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या जिसे पितृ विसर्जन के नाम से जाना जाता है के दिन तर्पण और श्राद्ध देकर उनको विदा किया जाता है। आइए जानते हैं आश्विन अमावस्या पूजा- विधि, शुभ मुहूर्त –

मुहूर्त – 

  • आश्विन, कृष्ण अमावस्या प्रारम्भ – 03:12 AM, सितम्बर 25

  • आश्विन, कृष्ण अमावस्या समाप्त – 03:23 AM, सितम्बर 26

पूजा- विधि –

  • सुबह जल्दी उठकर स्नान करें। इस दिन पवित्र नदी या सरवोर में स्नान करने का महत्व बहुत अधिक होता है। आप घर में ही नहाने के पानी में गंगाजल मिलाकर भी स्नान कर सकते हैं।

  • स्नान करने के बाद घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।

  • सूर्य देव को अर्घ्य दें।

  • अगर आप उपवास रख सकते हैं तो इस दिन उपवास भी रखें।

  • इस दिन पितर संबंधित कार्य करने चाहिए।

  • पितरों के निमित्त तर्पण और दान करें।

  • इस पावन दिन भगवान का अधिक से अधिक ध्यान करें।

  • इस पावन दिन भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व होता है।

श्राद्ध विधि – 

  • किसी सुयोग्य विद्वान ब्राह्मण के जरिए ही श्राद्ध कर्म (पिंड दान, तर्पण) करवाना चाहिए।

  • श्राद्ध कर्म में पूरी श्रद्धा से ब्राह्मणों को तो दान दिया ही जाता है साथ ही यदि किसी गरीब, जरूरतमंद की सहायता भी आप कर सकें तो बहुत पुण्य मिलता है।

  • इसके साथ-साथ गाय, कुत्ते, कौवे आदि पशु-पक्षियों के लिए भी भोजन का एक अंश जरूर डालना चाहिए।

  • यदि संभव हो तो गंगा नदी के किनारे पर श्राद्ध कर्म करवाना चाहिए। यदि यह संभव न हो तो घर पर भी इसे किया जा सकता है। जिस दिन श्राद्ध हो उस दिन ब्राह्मणों को भोज करवाना चाहिए। भोजन के बाद दान दक्षिणा देकर भी उन्हें संतुष्ट करें।

  • श्राद्ध पूजा दोपहर के समय शुरू करनी चाहिए. योग्य ब्राह्मण की सहायता से मंत्रोच्चारण करें और पूजा के पश्चात जल से तर्पण करें। इसके बाद जो भोग लगाया जा रहा है उसमें से गाय, कुत्ते, कौवे आदि का हिस्सा अलग कर देना चाहिए। इन्हें भोजन डालते समय अपने पितरों का स्मरण करना चाहिए. मन ही मन उनसे श्राद्ध ग्रहण करने का निवेदन करना चाहिए।

रिपोर्ट – राम गोपाल सैनी 

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