अजमेर (हमारा वतन) प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना 2.0 (जलग्रहण घटक) के अंतर्गत शनिवार को अजमेर में संभाग स्तरीय वाटरशेड महोत्सव-2025 का आयोजन हुआ। इसमें जल, भूमि और जन भागीदारी पर कार्यशाला के माध्यम से चर्चा की गई। जिलेवार लाभार्थी संवाद कार्यक्रम में व्यक्तियों ने अपने अनुभव साझा किए।
विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने कहा कि जल संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ने से एक सामान्य व्यक्ति भी इसके बारे में जानने समझने लगा है। आज के दिन पूरे देश में आयोजित हो रही संभाग स्तरीय कार्यशालाएं धरती का सुखद भविष्य सुनिश्चित करने का सामूहिक संकल्प है। जल संरक्षण से कृषि तथा मानव के लिए पर्याप्त जल उपलब्ध रहेगा। साथ ही मृदा का क्षरण रूककर संरक्षण होगा। वर्तमान में भूजल का दोहन अधिक मात्रा में किया जा रहा है। इसके मुकाबले रिचार्ज कम मात्रा में हो रहा है। इस कारण जल संरक्षण के माध्यम से भूजल का रिचार्ज बढ़ाने की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि जल संरक्षण के लिए विभिन्न सिंचाई परियोजनाओं की मरम्मत तथा नवीनीकरण किया जाना चाहिए। जल संरक्षण का कार्य जन समुदाय के सहयोग से ही अपना लक्ष्य प्राप्त कर सकता है। इसमें सरकार के साथ मिलकर गैर सरकारी संगठनों, भामाशाहों तथा उद्यमियों को सीएसआर फण्ड के माध्यम से कार्य करना चाहिए। स्थानीय मिट्टी तथा जल को केन्द्र में रखकर योजनाएं बनने से उनका लाभ अधिकतम व्यक्तियों तक पहुंचेगा।
उन्होंने कहा कि राजस्थान की पहचान अब बदलने लगी है। पूर्व के रेतिलो राजस्थान का स्थान अब हरियालो राजस्थान ने ले लिया है। इसमें वर्तमान सरकार द्वारा किए गए वृ़क्षारोपण का विशेष योगदान है। गत वर्ष ही 11 करोड़ से अधिक वृक्ष लगाकर एक रिकॉर्ड बनाया गया। जल संरक्षण हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग रहा है। पुराने बावड़ियों तथा तालाब आज भी प्रासंगिक है। इनको बचाए जाने की आवश्यकता है। जल स्त्रोतों तथा इनके जलग्रहण क्षेत्र को अतिक्रमण मुक्त रखा जाना चाहिए। वर्षा जल को संरक्षित करने का स्वभाव बनाएं। अब तो सिंध नदी का जल भी भारत के विभिन्न राज्यों के लिए उपलब्ध रहेगा।
केन्द्रीय कृषि राज्यमंत्री भागीरथ चौधरी ने कहा कि जल संरक्षण से जमीन और किसान को बचाने में सहयोग मिलेगा। जल का संचय तथा संरक्षण करना प्रत्येक व्यक्ति का दायित्त्व है। भारतीय संस्कृति में जल को देवता माना जाता है। तालाब और बावड़ी बनाना पुण्य का कार्य है। राजस्थान में भूमि के अनुपात में जल कम है। इसलिए यहां जल संरक्षण की अधिक आवश्यकता है। यहां जल संरक्षण को जन आंदोलन बनाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि प्रकृति से छेड़खानी के कारण जलवायु परिवर्तित हो रही है। इसका प्रभाव हिमशिखरों, समुद्री जलतल तथा तापमान पर पड़ा है। इससे बचने के लिए जल संरक्षण करना पड़ेगा। किसान हमेशा एक और वर्षा की कामना करता रहा है। इस एक और वर्षा की पूर्ति जल संरक्षण से की जा सकती है। फार्म पोण्ड इसका बेहतरीन उदाहरण है। खेत का पानी खेत में तथा गांव का पानी गांव में रहने से किसान खुशहाल होंगे। इन्हीं किसानों की खुशहाली भारत को 2047 तक विकसित भारत बनाकर रहेगी।
उन्होंने कहा कि राजस्थान की भौगोलिक संरचना के कारण यहां जल ग्रहण परियोजनाएं सर्वाधिक सफल होगी। किसानों को प्राकृतिक खेती को अपनाना चाहिए। इससे भूमि की उर्वरा शक्ति तथा उत्पादन दोनों में वृद्धि होगी। खेती में रसायनों के प्रयोग से बचना चाहिए। सरकार किसानों की आय को दोगुना करने के लिए लगातार प्रयास कर रही है।
इस अवसर पर अतिरिक्त संभागीय आयुक्त दीप्ती शर्मा, जिला प्रभारी तथा जल ग्रहण विभाग के अतिरिक्त निदेशक राजेन्द्र प्रसाद, जिला परिषद के अतिरिक्त मुख्य कार्यकारी अधिकारी शिवदान सिंह, जल ग्रहण विकास एवं भू संरक्षण विभाग के अतिरिक्त मुख्य अभियंता दिलीप जादवानी, अधिशाषी अभियंता कपिल भार्गव एवं श्याम लाल जांगिड़, महोत्सव के नोडल शलभ टंडन उपस्थित रहे।
रिपोर्ट – राम गोपाल सैनी
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